Saturday, March 15, 2008

This poem was written by me on Diwali 2007 when I was definitely not in the happiest of my moods. I had almost lost it, had written it in the roughbook of a friend. Thought would post this here, now that I have got it.
Warning (esp. for my family): Dont worry, I am very happy today !

सबके चेहरो पर छाई खुशहाली
कहते है सब मुझे हैप्पी दिवाली
किस बात की खुशी मनाऊँ मैं
कब तक ये झूठा मुखौटा पहनुँ मैं
साल का सबसे बड़ा त्यौहार है आज
श्रीराम ने पहना था अपने सर पर ताज
मेरा तो अभी वनवास शुरु हुआ है
साथ सिर्फ चाहने वालों की दुआ है
न जाने कैसे बिताए श्रीराम ने १४ साल
मेरा तो कुछ ही महिनों में हो गया है ये हाल
शायद इसीलिए कहलाते वो भगवान हैं
लेते हम मामूली इंसानों का इम्तिहान है
हिम्मत अब धीरे धीरे टूट रही है
लगता है जैसे गाड़ी कोई छूट रही है
थोड़ी सी दूरी रह जाती है हर बार
और मैं भागती रहती हूँ लगातार
सब्र का फल मीठा होता ह, जानती हूँ मैं
लेकिन क्या करुँ , आखिर इंसान हूँ मैं
ले ले विधाता चाहे जो परीक्षा , हिम्मत नहीं हारुँगी मैं
एक न एक दिन दिवाली ज़रुर मनाऊँगी मैं